Wednesday, 12 March 2025

 ये उन दिनों की बात है, जब हम भी गली चौराहों पर बैठा करते थे

रहें कहीं भी मगर, कुछ लोग अपना भी इंतजार किया करते थे

बदमाशियों में मशहूर, पड़ोसी बाबा की कुर्सी ही चुरा लिया करते थे

होली पे सब जला के, उनकी ढेरों गालियां सुना करते थे

अगले दिन रंगों में सराबोर, जैसे ही उनके पांव छुआ करते थे

लगा के गले वो, प्यार से थपकियां दिया करते थे

क्या दिन थे, जब सब होली के हुड़दंग में मस्ती किया करते थे

आस पड़ोस मुहल्लेबाजी, लोग अपनेपन से जिया करते थे 

Thursday, 18 January 2024


यूं ही गुजरते गुजरते हर साल गुजर गया

हर साल का इक इक खयाल गुजर गया

अभी देखा कि सब कुछ नया सा क्यूँ है

जनवरी आया तो नए साल का इंतज़ार गुजर गया

फिक्रमंद है कि अब तो नई ख्वाहिशे होंगी

नए साल पे मगर यादों का कारवां गुजर गया

नए दोस्त पुराने दोस्त, अजी छोड़िए इन फलसफ़ों को

जिये कुछ ऐसे मानो हवाओं का तूफान गुजर गया

चलिये नए साल में करके गमों को दूर,

खुशियों को बोले के उनका इंतज़ार गुजर गया


Thursday, 10 August 2023

 

चलेंगे साथ में बस यूं ही

कोई सवाल कोई शिकायत नहीं

वो वक़्त वो लम्हे

अब भी जेहन में घूमते है कहीं

सितारों की महफिलों में

हमसाया बनके रहेंगे वहीं...

Wednesday, 5 October 2022

कहकशों के शहर में गज़ब की उदासी है

सिसकियों के समंदर और हंसी बस जरा सी है

Friday, 1 July 2016

फिर वही तनहाई मयस्सर होगी
उन्हीं अफसानों में दिन बसर होंगे
रतजगों का क्या कहूँ साहिब
मौजूदगी से आपकी हम बेखबर होंगे

Thursday, 7 January 2016


जालिम ने कदर तो जानी,
पर लूट ली आबरू
नजर का धोखा था वो
संग रहूँ या क्या करूँ
करीब उसको इतना किया
अब दूर उसको कैसे करूँ
पल भर के लिए ही सही
वो अपना था,
पर रुखसती में सिर्फ ये शायरी कहूँ
तबीयत मुकम्मल होगी जब कभी
फिर अल्फ़ाज़ों में उसकी ही बातें कहूँ

Friday, 17 July 2015

तनहाई


आइनें रोज देखे हमने
अक्स धुंधला ही नजर आता है
सोचा फरेबी है आईना मेरा
पर नजर से ही शायद फरेब आता है
शिकायतें हजार थी इस जहां से मेरी
और फिर उन्हीं से दिल हार जाता है।

जिंदगी से रूबरू होकर भी
यहाँ से भागने का दिल करता है
सुना वक़्त हर गम की दवा है
पर वो वक़्त ही जहर लगता है
ना जाने क्यू बेरुखी किस्मत की है
पर किस्मत से ही उम्मीदों का दिया जलता है।

ना थी ख्वाहिशें आसमानों की
पर देख के उड़ानें मन टीस जाता है
भीड़ संग दौड़े बहुत हम
पर उसी में खुद को तन्हा पाता है
किसी को कौन समझाये यहाँ पर
तन्हाइयों से जिंदगी का मजा ही कुछ और आता है

जमानें में गम बहुत है यारों
किसी का चेहरा मगर हमको बचाता है
ऐ जिंदगी कोशिशें बेशुमार कर ले मगर
तड़प कर मुस्कुराना हमें खूब आता है।
फितरत नहीं उम्मीदों के बोझ में दबने की
पर कीजिये क्या अश्क खुद-ब-खुद निकल आता है।