ये उन दिनों की बात है, जब हम भी गली चौराहों पर बैठा करते थे
रहें कहीं भी मगर, कुछ लोग अपना
भी इंतजार किया करते थे
बदमाशियों में मशहूर, पड़ोसी बाबा की
कुर्सी ही चुरा लिया करते थे
होली पे सब जला के, उनकी ढेरों
गालियां सुना करते थे
अगले दिन रंगों में सराबोर, जैसे
ही उनके पांव छुआ करते थे
लगा के गले वो, प्यार से
थपकियां दिया करते थे
क्या दिन थे, जब सब होली के
हुड़दंग में मस्ती किया करते थे
आस पड़ोस मुहल्लेबाजी, लोग अपनेपन से
जिया करते थे